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बीवी की सहेली से प्यार -1 Sex Kahani

दोस्तो, आप मुझे जानते होंगे, मैं अन्तर्वासना का प्राचीन लेखक हूँ। मैंने sex kahani पर लगभग 150 कहानियाँ लिखी हैं। आज मैं आपको एक कहानी बताऊंगा जो मेरे अपने एक पाठक की भेजी हुई कहानी बताने जा रहा हूँ। इन पाठक महोदय ने अपने अंदाज़ में कहानी लिख कर भेजी थी, मगर मैंने उसे सिर्फ उनसे पूछ पूछ कर इस कहानी को थोड़ा और रोचक बनाया है.
लीजिये पढ़िये।
दोस्तो, मेरा नाम शान्तनु है, मेरी उम्र इस समय 48 साल है। मैं, मेरी पत्नी और मेरा बेटा… यही मेरा परिवार है।
अभी कुछ समय पहले मेरी पत्नी की एक सहेली बनी। वो औरत हमारे मोहल्ले की दूसरी गली में रहती है। दोस्ती की वजह यह हुई कि मेरी पत्नी और उस औरत, दोनों का नाम शालिनी है। उस औरत शालिनी के दो बेटियाँ है, बड़ी बेटी दिव्या 20 साल की है, और सबसे छोटी बेटी राम्या 18 साल की है। छोटी लड़की पतली और काले बालों वाली है।और छोटी बेटी सौम्य 18 साल की है। छोटी लड़की तो पतली दुबली सी, साँवली सी है। बड़ी लड़की दीपा भी पतली है मगर वो गोरी है, देखने
में भी सुंदर है और अभी बी ए कर रही है।
शालिनी का पति यहीं रहता था और दोनों पत्नियाँ छोटा-मोटा काम करके अपना गुजारा करती थीं, इसलिए घर के हालात बहुत अच्छे नहीं थे।
फिर जब शालिनी के पति को विदेश जाने का मौका मिला तो वह पैसे कमाने के लिए विदेश चला गया।
हम वास्तव में घर पर एक-दूसरे से मिलने गए। लेकिन जब शालिनी का पति विदेश चला गया तो शालिनी मेरे लिए खास हो गई। भले ही वह दिखने में या शारीरिक रूप से मेरी पत्नी जैसी नहीं दिखती थी, एक अजीब औरत एक अजीब औरत होती है। भले ही वह बदसूरत हो, उसके स्तन, गांड और चूत अभी भी आपको आकर्षित करते हैं।
मेरे मन में भी कई बार इस बात का ख्याल आया कि शालिनी को थोड़ा टटोल के देखूँ, पति इसका पास में नहीं, तो रात को ये भी तो बिस्तर पर करवटें बदलती होगी. अगर किसी तरह से बात बन गई, तो अपने को बाहर मुँह मारने का मौका मिल जाएगा।
हालांकि मैं उसके घर कम जाता था, मैं तो अपने काम धंधे में ही बिज़ी रहता था मगर कभी कभार आना जाना हो जाता था या कभी कभी वो भी आ जाती थी।
अब मेरी बीवी के साथ उसका अच्छा दोस्तना था, वो मेरी बीवी को दीदी और मुझे जीजाजी कहती थी। मगर मैंने कभी उसके साथ साली कह कर कोई हंसी मज़ाक नहीं किया, मैं थोड़ा रिज़र्व ही रहता था. हाँ उसकी बेटियों के साथ मैं हंस बोल लेता था।
पति के विदेश जाने के बाद उसने घर के कई कामों में कई बार मेरी मदद भी ली मगर मैंने खुद आगे बढ़ कर कभी कुछ नहीं किया. मेरे और शालिनी के बीच मेरी पत्नी हमारी कड़ी थी। सारा
काम, बातचीत मेरी पत्नी के द्वारा ही होती थी।
मगर एक बात जो मैं नोटिस कर रहा था कि शालिनी का व्यवहार अब बदलने लगा था। जब भी मौका मिलता उसे, वो मुझे जीजाजी कह कर खूब हंसी मज़ाक कर लेती। मुझे अक्सर लगता कि वो अपनी आँखों से अपनी बातों से अपने हाव भाव से यह जता रही थी कि जीजाजी हिम्मत करो और मुझे पकड़ लो, मैं आपको ना नहीं करूंगी।
मगर मैं अपनी पत्नी के सामने होते उसे कैसे पकड़ सकता था।
समझती वो भी थी कि जब तक हम अकेले नहीं मिलते तब तक कोई भी सम्बन्ध हमारे बीच नहीं बन सकता था। मगर अकेले मिलने का कोई भी मौका हमें नहीं मिल रहा था।
हमारी दोस्ती या यूं कहो कि दिल में छुपा हुआ प्यार इसी तरह चल रहा था। अपने अपने मन में हम दोनों तड़प रहे थे। मैं कम तड़प रहा था, वो ज़्यादा तड़प रही थी। वो कई बार कह भी चुकी थी- जीजाजी, आपके पास कार है, मुझे कार चलानी सिखाइए। जीजाजी, किसी दिन अपन दोनों कोई फिल्म देखने चलते हैं। मेरी तो इच्छा है कि बरसात हो रही हो, और हम दोनों जीजा साली कहीं दूर तक गाड़ी में घूम कर आयें।
ये सब बातें वो बातों बातों में मेरी पत्नी के सामने कह चुकी थी और ऐसी ही बातों से मेरे दिल में ये विचार आए कि शायद ये मुझसे अकेले मिलने का बहाना ढूंढ रही है।
फिर एक दिन उसने और बड़ा ब्यान दाग दिया।
हुआ यूं कि हम बाज़ार गए थे, वहीं वो भी मिल गई, अपनी दोनों बेटियों के साथ। तो औपचारिकतावश हमने उन्हें शाम के खाने का न्योता दिया।
वो झट से मान
हम एक मिठाई की दुकान में गए, ऊपर उनका ही रेस्टोरेन्ट बना था। सब कुछ शाकाहारी था। हमने वहाँ बैठ कर खाना खाया।
अब उसकी बड़ी बेटी मेरे साथ बैठी जबकि शालिनी, उसकी छोटी बेटी, और मेरी पत्नी मेरे सामने बैठी।
दीपा वैसे भी मेरे से बहुत स्नेह करती थी।
हम दोनों चुपचाप बैठे खाना खा रहे थे, वो शालिनी बोली- देखो दोनों कैसे बिल्कुल एक ही स्टाइल से खाना खा रहे हैं, जैसे दीपा आपकी ही बेटी हो।
मैंने कहा- हाँ, मेरी बेटी है।
अब मैं और क्या कहता।
मगर तभी शालिनी बोली- आपकी कैसे हो सकती है, हम कभी मिले तो है नहीं
मैं तो सन्न रह गया। मिले नहीं मतलब सेक्स नहीं किया। मैंने सोचा- अरे भाई ये तो चुदवाने के चक्कर में है, और मैं यूं ही शराफत में मारा जा रहा हूँ।
मगर उस वक्त मैंने सिर्फ हाथ उठा कर आशीर्वाद देने का ढोंग कर दिया कि दीपा तो मेरी आशीर्वाद से पैदा हुई बेटी है।
तो दीपा बोली- मौसा जी, अगर आप बुरा न माने तो मैं आपको पापा कह लिया करूँ।
अब मैं इस बेटी की इस छोटी सी और प्यारी सी विनती को मना नहीं कर सका, मैंने कहा, “हां बेटा, मुझे खुशी होगी, मेरी कोई बेटी नहीं है, तुम मेरी बेटी बनोगी।”
उस दिन के बाद दीपा मुझे हमेशा डैडी कहकर बुलाती थी। लेकिन सबसे छोटी बेटी कभी पिता बुलाती तो कभी चाचा । मेरे उसके साथ अच्छे संबंध थे क्योंकि वह ज्यादातर समय चुप रहती थी।
फिर एक दिन दीपा ने मुझसे मेरा फोन नंबर मांगा, उसके बाद वह कभी मुझे फोन करती, कभी सुबह और शाम को मैसेज भेजती और मैंने भी हर पिता-बेटी की तरह उसे प्यारे-प्यारे मैसेज भेजे।
एक दिन जब मैं और मेरी पत्नी उनके घर गये, उस दिन रविवार था और सब लोग वहाँ बैठे अपने बाल धो रहे थे।
तभी दीपा तेल लेकर आई और तीनों माँ बेटी एक दूसरे के सिर में तेल लगाने लगीं।
मैंने भी बैठे-बैठे ही कहा- वाह दीपा, तुम तो बहुत अच्छा तेल लगाती हो!
उसने कहा, “पिताजी, क्या मुझे इसका प्रयोग आप पर भी करना चाहिए?”
मैंने कहा हाँ लगा दो.
जब उनका काम ख़त्म हो गया तो दीपा तेल की शीशी लेकर मेरे पास आई। मैं उसके सोफे पर बैठ गया और वह मेरे पीछे आई, कटोरी से तेल निकाला और मेरे बालों में लगाने लगी।
“आह… हा… आह…” बेटी कितना आनंद आया जब उसने अपने कोमल हाथों से अपने पिता के सिर पर तेल लगाया।
शालिनी बोली- अरे जीजाजी, मैं लगा दूँ आपके तेल?
उसकी बात में एक तंज़ मैं समझ गया मगर मैंने कहा- अजी नहीं शुक्रिया, बिटिया बहुत बढ़िया लगा रही है।
उसके बाद उनके घर ही हमने खाना खाया और जब वापिस आए, तो अपनापन दिखाने के लिए शालिनी ने पहले मुझे नमस्ते बोली और फिर आगे बढ़ कर मुझे आलिंगन भी किया. मगर उसने आलिंगन करते हुये अपना मम्मा मेरी बगल से अच्छे से रगड़ दिया और मेरी तरफ देख कर शरारत से मुस्कुराई।
वो मुझे साफ से साफ इशारे कर रही थी कि आओ मुझे पकड़ो मगर मैं ही ढीला चल रहा था।
मैंने सोचा कि अब अगर एक भी मौका और मिला, तो मैं शालिनी से बात कर लूँगा।
फिर एक दिन मौका मिला, वो हमारे घर ही आई हुई थी, मेरी बीवी रसोई में थी। मैंने पूछा- अरे शालिनी, तुमने मेरा मोबाइल नंबर लिया था, पर कभी फोन तो किया नहीं?
वो बोली- आप तो वैसे ही कम बात करते हो, क्या पता फोन पर बात करो भी या नहीं।
मैंने कहा- अरे नहीं, मैं तो बल्कि इंतज़ार कर रहा था कि कभी हैलो हाई, नमस्ते, गुड मॉर्निंग, आई लव यू, कुछ तो मेसेज करो।
वो मेरी बात सुन कर बहुत हंसी, बोली- अच्छा अब करूंगी।
और अगले ही दिन सुबह उसका मेसेज आया ‘गुड मॉर्निंग’ का। जवाब में मैंने भी उसको गुड मॉर्निंग का मेसेज भेजा। और दिन में ही हम दोनों ने 50 करीब व्हाट्सअप मेसेज एक दूसरे को कर दिये।
जितना मैं खुल कर चला, वो उससे भी ज़्यादा खुल कर चली और अपने जीजा साली के रिश्ते की सारी मान मर्यादा तोड़ कर हम दोनों ने एक दूसरे को खुल्लम खुल्ला प्यार का इज़हार तक कर दिया। यहाँ तक के उसने ये भी कह दिया कि अगर आप न कहते तो मैं खुद ही कहने वाली थी।
अब जब प्यार का इज़हार ही हो गया, तो और क्या बाकी रहा। वो पूरी तरह से मेरे साथ सेट हो चुकी थी। मन में खुशी के लड्डू फूट रहे थे कि यार कमाल हाई, 48 साल की उम्र में भी माशूक पटा ली।
उसके बाद तो अक्सर हम फोन पर बाते करते, दो तीन दिन में ही, बातें शीशे की तरह साफ हो गई। दोनों ने एक दूसरे से कह दिया कि अब जिस दिन भी मिलेंगे, अकेले में मिलेंगे, और उसी दिन हम सभी हदें पार कर जाएंगे।
मैंने सोचा, अब माशूक के पास जाना है, तो पूरी तैयारी के साथ जाया जाए। बुधवार की मैंने अपने काम से पहले ही एक दिन की छुट्टी ले ली थी।
मगर मंगलवार को मैंने कुछ और काम भी किया। मैंने आधी गोली सेक्स पावर की खा ली। यह गोली खाने से आप जब कहो, तब आपका लंड आपके इशारे पर खड़ा हो जाता है, और वो भी पूरा कड़क, पत्थर की तरह सख्त। बस इतना ज़रूर है कि ये गोली यूरिक एसिड बढ़ा देती है। मगर इसका असर 2-3 दिन रहता है।
बुधवार की सुबह मैंने एक चने के आकार की गोली अफीम की कड़क चाय के साथ निगल ली। अब सफ़ेद गोली लंड को खड़ा रखने के लिए और काली देर तक न झड़ने के लिए।
हमारा 12 बजे मिलने का प्रोग्राम था। मगर मैं 11 बजे से पहले ही हर तरह से तैयार था। करीब पौने 12 बजे मैंने शालिनी को फोन करके पूछा- हां जी क्या हाल हैं साली साहिबा?
वो बोली- बहुत बढ़िया, आप सुनाओ।
मैंने पूछा- मैं तो सोच रहा था, सुबह सुबह आपके दर्शन हो जाते तो, सारा दिन बढ़िया गुज़रता।
वो उधर से बोली- तो आ जाइए, किसने रोका है, आपका ही घर तो है।
मैं तो उड़ता हुआ उसके घर पहुंचा। गेट खोल कर अंदर गया, अंदर घर में वो रसोई में कुछ कर रही थी। मैंने आस पास देखा, घर में और किसी के होने की आहट नहीं थी। मगर फिर भी मैं रसोई में गया, उस से नमस्ते की, उसका, बच्चों का हाल चाल पूछा।
फिर पूछा- बच्चे कहाँ हैं।
वो बोली- बड़ी कॉलेज, छोटी स्कूल। बस घर में मैं अकेली हूँ।
मतलब जो मैं पूछना चाहता था, वो उसने खुद बता दिया।
वो गैस पर चाय बना रही थी, मैं उसके पीछे जा कर खड़ा हो गया। दिल तो कर रहा था कि इसे पीछे से ही बांहों में भर लूँ, मगर फिर भी दिल में एक डर सा था। मगर फिर भी मैंने हिम्मत करके उसको अपनी बांहों में भर लिया।
वो एकदम से चौंकी- अरे जीजाजी, ये क्या कर रहे हो?
वो गुस्सा नहीं हुई तो मेरी भी हिम्मत और बढ़ गई, मैंने झट से उसकी गर्दन पर एक दो चुंबन जड़ दिये और उसे कस कर अपने से चिपका कर बोला- उम्म्ह … अहह … हय … ओह … मेरी शालिनी, अब सब्र नहीं होता यार!
और मैंने उसकी गर्दन कंधो को चूमते हुये, उसका चेहरा घुमाया, और उसके गाल पर भी चूम लिया।
वो मुस्कुरा कर बोली- आप तो बड़े बेशर्म हो, छोटी साली तो बेटी जैसी होती है।
कहानी का अगला भाग:बीवी की सहेली से प्यार -2

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